भानु प्रताप मिश्र
कवि सम्मेलन लोक संचार का बहुत ही प्रभावशाली और अनोखा माध्यम है। यह नाट्य कला की भाँति कलात्मक संचार कला है। यह कला बहुत कम लोगों में पाया जाता है। इस संचार कला में जो स्रोत होता है, वह प्रापक तक fअपनी बात या सन्देश को पहुँचाने के लिए एक विशेष विधा का उपयोग करता है। जिसे हम पद्य विधा कहते हैं। भारत में इस विधा की उत्पति 4500 से 1500 ईसा पूर्व के बीच मानी जाती है,
इस विधा पर कई विद्वानों का मत है कि ऋग्वेद की ऋचाओं से इसकी उत्पति हुई। इस विधा में सन्देश को संक्षेप में स्रोत द्वारा पहले निर्मित किया जाता है। उसके बाद गेय रूप में लोगों के समक्ष मंचों से स्रोत द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस सन्देश को निर्मित और प्रस्तुत करने वाले स्रोत को कवि कहा जाता है और इसको बड़ी संख्या में लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर सुनते हैं। उस कार्यक्रम को कवि सम्मेलन कहा जाता है।
चूँकि हम संचार पर चर्चा कर रहे हैं। इसलिए इस विधा के गहराइयों तक जाना उचित नहीं है। फिर भी इस विधा का संक्षिप्त परिचय देना मेरा दायित्व है। इसलिए मैं आप सभी को इस विधा का संक्षिप्त परिचय दे रहा हूँ। कविता के माध्यम से ही इस संचार प्रक्रिया में स्रोत और प्रापक दोनों भाग लेते हैं। इसलिए कविता का परिचय देना भी आवश्यक हो जाता है। जब किसी सन्देश को संक्षिप्त रूप देकर गेय बना दिया जाए, उस सन्देश को कविता कहते हैं और कवि सम्मेलनों में संचार का माध्यम भी कविता ही होती है।
कविता का मूल कार्य प्रापक के अन्दर रस उत्पन्न करना होता है। इसलिए कविताएँ कई रस की होती हैं। जैसे – हास्य, व्यंग्य, वीर, करूण आदि कविताएँ कई प्रकार के रस से युक्त होती हैं और ये कविताएँ प्रापक के मस्तिष्क में भाव की अनुभूति कराती हुई, सन्देश के अर्थ को भी पहुँचा देती हैं। इसीलिए लोक कलाओं में कविता श्रेष्ठतम कला है और कवि सम्मेलन श्रेष्ठतम लोक संचार का माध्यम होता है।
अतः कविताएँ भारत में लोक संचार की चीर कालीन माध्यम रही हैं। यदि हम कविताओं के निर्माण और प्रस्तुतीकरण पर चर्चा करें तो हमें यह मिलता है कि कविताएँ केवल गेय ही नहीं होती हैं। जिन कविताओं का निर्माण मात्रिक गणना के आधार पर किया जाता है। अर्थात् जिन कविताओं के निर्माण में मात्राओं के गणना को आधार बनाया जाता है,
वैसी कविताएँ गेय होती है। लेकिन सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा शुरू की गयी गद्यात्मक कविताएँ जिसकी आधार मात्रिक गणनाएँ नहीं होती हैं। वैसी रचनाएँ भी कविता की श्रेणी में ही आती हैं। उनके द्वारा लिखी गयी राम की शक्ति पूजा उस शैली की अमर रचना है। इन कविताओं का भाव और भाषा शैली बहुत उत्कृष्ट होती है। वर्तमान में तो नयी कविताएँ भी लिखी जाने लगी हैं। जिसमें भाव पक्ष ही प्रबल होता है,
इन कविताओं में लयबद्धता नहीं होती है। वर्तमान समय में गद्य शैली के उत्कृष्ट मंचीय कवियों में से सम्पत सरल जी को उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। आज की नयी कविताओं से महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाओं की तुलना करना वैसे तो धृष्टता ही कही जा सकती है। चूँकि उदाहरण के उद्देश्य मात्र से मैंने इस तुलना को रेखांकित किया है। इसलिए आशा है कि मेरे द्वारा की गयी यह तुलना क्षम्य होगी।