छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य हैं लोक संचार के माध्यम

छत्तीसगढ़ के लोक मीडिया से मिलता है, छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक परिचय

by Bhanu Pratap Mishra

भानु प्रताप मिश्र

भारत के अन्य प्रदेशों की भांति छत्तीसगढ़ में भी संचार के लिए लोक माध्यमों को विकसित किया गया। जिन्हें लोकनाट्य, लोक नृत्य व लोक संगीत के रूप में जाना जाता है। छत्तीसगढ़ में भी लोक नाट्यों, लोक नृत्यों व लोक संगीतों के माध्यम से लोगों में संदेश देने, मनोरंजन पहुंचाने व लोगों को शिक्षित करने का कार्य पुरातन काल से किया जाता रहा है।

छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य

यह लेख भारतीय संचार यात्रा नामक पुस्तक से ली गयी है।

नाचा लोकनाट्य : छत्तीसगढ़ का नाचा लोक संचार की एक सशक्त विधा के साथ-साथ लोकप्रिय विधा भी है। इसमें पुरूष ही महिला बनकर नाचते हैं। प्रत्येक दो – नाच के बाद गम्मत या प्रहसन होता है।

जिसमें विदूषक के अतिरिक्त कुछ अन्य पात्र प्रहसन प्रस्तुत करते हैं। प्रस्तुत किए गये प्रहसन में अत्यन्त तीखा व्यंग्य होता है, किन्तु इसका समापन किसी अच्छे आदर्श को इंगित करता है।

चँदैनी लोकनाट्य : लोकनाट्य में लोरिक और चँदा की प्रणय गाथा, चँदैनी में प्रस्तुत की जाती है। वस्तुतः चँदैनी लोकनाट्य की एक ऐसी एकल शैली है। जिसमें कलाकारों की संख्या कम होती है। एक ही पात्र अनेकों पात्रों का अभिनय कर लेता है।

बस्तर का भतरानाट : बस्तर के भतरा जनजाति द्वारा इस नाट्य का मंचन किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से रावण बध, कंस बध आदि पर आधारित नाटकों का मंचन किया जाता है। इस पर उड़ीसा की संस्कृति की छाया देखी जाती है,

क्योंकि यह उड़ीसा का सीमावर्ती क्षेत्र है और यहाँ के राजा एक बार कुछ लोगों को साथ लेकर उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी गये थे। तभी से इस नाटक का आरम्भ होना माना जाता है।

बिलासपुर का रहस : छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य में रहस की भूमिका अहम मानी जाती है। रहस वस्तुतः रास है तथा भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का प्रदर्शन किया जाता है। यह लोकनाट्य छत्तीसगढ़ के बिलासपुर क्षेत्र में लोकप्रिय है।

छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य की प्रस्तावना : छत्तीसगढ़ में कई प्रकार के लोक नृत्य भी लोक संचार के लिए उपयोग किए जाते रहे हैं। जैसे – पंथी नृत्य, राउत नाचा, गेड़ी नृत्य, डंडा नाच, देवारिन नृत्य और आदिवासी नृत्य आदि लोक संचार के लिए उपयोग किये जाते हैं।

पंथी नृत्य : पंथी सतनामी समाज के भक्तों द्वारा अपने गुरू घासीदास तथा उनके बताए सत्य की महिमा को रेखांकित करके, गाया जाने वाले गीत के साथ भाव-प्रणव नृत्य है।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत : छत्तसीगढ़ की लोक संस्कृति में कई लोकगीत भी हैं। जैसे – सुआ, ददरिया, गौरी-गौरा, भोजली, जँवारा, बिहाव, भजन, पंडवानी और देवार गीत आदि छत्तीसगढ़ के संस्कृति के लोकगीत हैं।

सुआ गीत : यह वस्तुतः प्रेम प्रकट करने वाला तोता-तोती का गीत है। इसे नृत्य के साथ गाया जाता है।

करमा गीत : करमा छत्तीसगढ़ और झारखंड का एक प्रमुख त्योहार है। मुख्यरूप से यह त्योहार भादो मास के एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आस-पास मनाया जाता है। इस मौके पर लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छी फसल की कामना करते हैं।

साथ ही बहनें अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। करमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ और झारखंड के लोग ढोल और मान्दर की थाप पर झूमते और गाते हैं। करमा गीत और नृत्य को आदिवासी संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।

ददरिया गीत : ददरिया छत्तीसगढ़ की मूलतः प्रेम को दर्शाने वाला गीत है। इसमें श्रृंगार रस का अद्भुत संगम पाया जाता है। जिस कारण ददरिया की स्वीकृति प्रेम काव्य के रूप में होती है। इसे छत्तीसगढ़ के लोकगीतों का राजा भी कहा जाता है।

गौरा गीत : यह भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा के लिए गाया जाता है। इसे गौरी-गौरा गीत भी कहा जाता है। यह छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय लोकगीत है।

भोजली गीत : भोजली गीत छत्तीसगढ़ का एक विशेष लोक गीत है। छत्तीसगढ़ की महिलाएँ इस गीत को सावन के महीने में गाती हैं। इस गीत के माध्यम से भूमि पर अच्छी वर्षा की कामना की जाती है।

जँवारा गीत : यह छत्तीसगढ़ में नवरात्र विशेष पर ही गाया जाने वाला लोकगीत है। इसे नवरात्र के अन्तिम दिन जँवारा विसर्जन अर्थात् जिस कलश की स्थापना माँ दुर्गा के सामने की गयी होती है, उसके चारों ओर जो ज्वार मिट्टी में डाले गये होते हैं।

वह नवरात्र के नव दिनों में अंकुरित होकर मिट्टी से बाहर निकल गये होते हैं, उसे ही जँवारा कहते हैं। उसी को नवरात्र के अन्तिम दिन विसर्जित किया जाता है और इसी अवसर पर जँवारा लोक गीत को गाया जाता है।

पण्डवानी गीत : यह छत्तीसगढ़ का विशिष्ट लोक गीत है। इसमें पाण्डवों की गाथा को गीत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और यह छत्तीसगढ़ी लोकगीत देश में ही नहीं, अपितु विश्व के कई देशों में अपनी छाप छोड़ चुका है। इसको शिखर तक ले जाने का श्रेय पण्डवानी की प्रसिद्ध लोक कलाकार तीजन बाई को जाता है।

इन्हें पण्डवानी गायन के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। इस लोक गीत के गुरू झाड़ूराम देवांगन हैं और इस विधा को अब ऋतु वर्मा द्वारा भी प्रसिद्धि की ओर ले जाया जा रहा है।

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