स्‍व की साधना ही भारत को देगी शक्‍ति

by Bhanu Pratap Mishra

संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा से निकलता ”स्‍व” का जयघोष

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

पानीपत वैसे इतिहास में कई स्‍मृतियों को स्‍वयं में समेटे हुए हैं। ये स्‍मृतियां भारत की उस शक्‍ति की याद दिलाती हैं, जो भारत को भारत बनाए रखने का कारण है। साथ ही इन्‍हीं स्‍मृतियों से भारत की वे कमजोरियां भी याद आती हैं जिन्‍होंने विजित जाति के इतिहास को पलटकर उस करवट बैठा दिया जहां से सदियों की दासता और उससे संघर्ष करते नए भारत का दौर शुरू होता है।

एतिहासिक सदर्भों में पानीपत वह स्‍थान है जिसे कभी महाभारत काल में पांडवों द्वारा ‘पांडुप्रसथ’ नाम से बसाया गया था किंतु आज जिस कारण से इस स्‍थान को याद किया जाता है वह भारतीय इतिहास की तीन प्रमुख लड़ाइयां हैं, जिन्‍होंने भारत की सांस्‍कृतिक विरासत से लेकर भारत के समूचे अस्‍तित्‍व को बदलने का प्रयास किया है। कहते हैं संषर्घ कैसा भी हो जो विजित होता है शासन वही करता है। पानीपत में भी यही हुआ।

जिस पानीपत में ”स्‍व” के अस्‍तित्‍व को बनाए रखने के लिए सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य लड़ाई लड़ रहे थे और जिस पानीपत में इसी ”स्‍व” के लिए 1761 में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली और पुणे के सदाशिवराव भाऊ पेशवा के बीच युद्ध लड़ा गया। उसी पानीपत की धरती पर फिर एक बार ”स्‍व” की पहचान एवं भारतीय जीवन में उसके आचरण के लिए आज राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सम्‍पन्‍न हुई है।

इस बैठक में होने को तो बहुत कुछ हुआ, किंतु इसमें महत्‍व का जो सबसे अधिक लगता है, वे प्रस्‍ताव आना है जोकि भविष्‍य के भारत की दशा और दशा दोनों तय करनेवाले हैं। जिस ”स्‍व” के लिए कभी पानीपत में हमारे पूर्वज युद्धरत रहे, उसी ”स्‍व” की हूक यहां से फिर गुंजायमान हुई है। इसीलिए ही यहां सामूहिक रूप से पारित प्रस्ताव में जोर देकर कहा गया कि ”स्‍व” आधारित राष्ट्र के नवोत्थान का संकल्प लें।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचारित अभिमत है कि विश्व कल्याण के उदात्त लक्ष्य को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए भारत के ”स्‍व” की सुदीर्घ यात्रा हम सभी के लिए सदैव प्रेरणास्रोत है। विदेशी आक्रमणों तथा संघर्ष के काल में भारतीय जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ तथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व धार्मिक व्यवस्थाओं को गहरी चोट पहुँची।

इस कालखंड में पूज्य संतों और महापुरुषों के नेतृत्व में संपूर्ण समाज ने सतत संघर्षरत रहते हुए अपने ”स्‍व” को बचाए रखा। इस संग्राम की प्रेरणा स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज की ”स्‍व” त्रयी में निहित थी, जिसमें समस्त समाज की सहभागिता रही। वस्‍तुत: राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जिस ”स्‍व” को आज याद कर रहा है, उसे आप गहराई से देखें और महसूस करेंगे तो ध्‍यान में आता है कि यह ”स्‍व” स्वाधीनता के पश्चात कहीं खो गया था। राज्‍य की राजनीतिक अवधारणा के बीच इस ”स्‍व”को नकारा जा रहा था ।

जैसे इसे नकारने के बाद ही प्रोग्रेसिव, लिबरल, इंटलैक्चुअल की छाप आप पर लगती । इस बात को बहुत बड़ी संख्‍या में पड़े लिखे नहीं समझना चाह रहे थे कि जिस भारत से दुनिया परिचित है, उस भारत के ”स्‍व” को नकारना यानी अपने अस्‍तित्‍व को ही चुनौती देना है। उस दौर में जो भी भारत के ”स्‍व” की बात करता वह कम्युनल और एंटी प्रोग्रेसिव कहलाता। फिर भी कुछ पढ़े लिखे और आज की भाषा में कहें तो बहुत से निरिक्षर लेकिन शिक्षित हिम्‍मती ऐसे थे जिन्‍होंने कभी भी इस ”स्‍व” को नहीं त्‍यागा। वे हर परिस्‍थ‍िति में ”स्‍व” के आग्रही बने रहे।

उन्‍होंने इस ”स्‍व” को ठीक उसी तरह पकड़ रखा था, जैसे कभी यहूदियों ने इसराइल के अस्‍तित्‍व में आने के पूर्व तक अपनी शपथ दुनिया के हर कोने से सबसे पहले सुबह उठते ही उसे दोहराना याद कर रखा था। ऐसे ही लोग भारत में पीढ़ी दर पीढ़ी इस ”स्‍व” को याद करते रहे और अपना कर्म करते रहे, इस आशा में कि कभी तो समय बदलेगा, और देखिए! समय बदला, जो ”स्‍व” पर अडिग रहे, आज वे भारत के कौने-कौने से उठ खड़े हुए हैं एक स्‍वर में। स्‍वाधीनता सेनानी रामप्रसाद बिस्‍मिल के शब्‍दों में कहें तो ”भारत जननि तेरी जय हो विजय हो” यह गीत गाते हुए ।

आज हम देख रहे हैं कि भारत की जितनी प्रगति होनी चाहिए, इस ”स्‍व” के प्रकाश में, वह हमारी विदेश नीति, रक्षा नीति, शिक्षा नीति, हमारी अर्थ नीति सब कुछ होते हुए, बहुत कुछ आगे बढ़ते हुए भारत के कौने-कौने में आज हमें दिखाई दे रही है। कहना होगा कि यह ”स्‍व” अपने पारिवारिक, व्यवसायिक, सामाजिक जीवन में आज जितना अधिक अभिव्यक्त होता दिख रहा है, भारत का भारतत्व उतना ही अधिक विश्‍व पटल पर छा रहा है। यही कारण है कि आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्‍व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभर रही है। भारत के सनातन मूल्यों के आधार पर होने वाले नवोत्थान को विश्व स्वीकार कर रहा है और ”वसुधैव कुटुम्बकम्” की अवधारणा के आधार पर विश्‍व शांति, विश्‍व बंधुत्व और मानव कल्याण के लिए भारत अपनी भूमिका निभाने के लिए अग्रसर दिखाई दे रहा है।

संघ का यह मत बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट और सही है कि सुसंगठित, विजयशाली एवं समृद्ध राष्ट्र बनाने की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, सर्वांगीण विकास के अवसर, तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग एवं पर्यावरणपूरक विकास सहित आधुनिकीकरण की भारतीय संकल्पना के आधार पर नए प्रतिमान खड़े करने जैसी चुनौतियों से पार पाना होगा।

राष्ट्र के नवोत्थान के लिए हमें परिवार संस्था का दृढ़ीकरण, बंधुता पर आधारित समरस समाज का निर्माण तथा स्वदेशी भाव के साथ उद्यमिता का विकास आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इस दृष्टि से समाज के सभी घटकों, विशेषकर युवा वर्ग को समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता है।

कहना होगा कि संघर्षकाल में विदेशी शासन से मुक्ति हेतु जिस प्रकार त्याग और बलिदान की आवश्यकता थी; उसी प्रकार वर्तमान समय में उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नागरिक कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध तथा औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त समाजजीवन भी आज खड़ा कर देने की आवश्‍यकता है । इस परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री मोदी का ”पंच-प्रण” का आह्वान भी महत्वपूर्ण है।

इसलिए यहां संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात को रेखांकित करती हुई दिखती है कि एक ओर अनेक देश भारत की ओर सम्मान और सद्भाव रखते हैं, तो वहीं भारत के ”स्‍व” आधारित इस पुनरुत्थान को विश्व की कुछ शक्तियाँ स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। हिंदुत्व के विचार का विरोध करने वाली देश के भीतर और बाहर की अनेक शक्तियाँ निहित स्वार्थों और भेदों को उभार कर समाज में परस्पर अविश्वास, तंत्र के प्रति अनास्था और अराजकता पैदा करने के लिए नए-नए षड्यंत्र रच रही हैं। हमें इन सबके प्रति जागरूक रहते हुए उनके मंतव्यों को विफल करना होगा।

अंत में यही कि भारत का यह अमृतकाल उसे वैश्विक नेतृत्व प्राप्त कराने के लिए सामूहिक उद्यम करने का अवसर प्रदान कर रहा है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रबुद्ध वर्ग सहित सम्पूर्ण समाज का आह्वान करती है कि हे भारतवासियों ! भारतीय चिंतन के प्रकाश में सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक, न्यायिक संस्थाओं को आगे बढ़ाओ। इतना ही नहीं तो समाजजीवन के सभी क्षेत्रों में यह ”स्‍व” संपूर्ण शक्ति के साथ प्रकट हो, जिससे भारत विश्‍वमंच पर एक समर्थ, वैभवशाली और विश्‍वकल्याणकारी राष्ट्र के रूप में समुचित स्थान प्राप्त कर सके ।
लेखक न्‍यूज एजेंसी हिन्‍दुस्‍थान समाचार से जुड़े वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।

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