समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध।
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।।
भानु प्रताप मिश्र
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्तियां जितनी उस समय प्रासंगिक थीं। उतनी ही प्रासंगिकता इन पंक्तियों की आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में भी है। क्योंकि संसद में होने वाला विरोध जन चर्चा का विषय बना हुआ है। मणिपुर की घटनाओं पर जनता के चर्चा से निकलने वाला निष्कर्ष यह बताता है कि जनता मणिपुर के मैतेई समुदाय के पीड़ा से अधिक जुड़ी हुई है।
जिस घटना के विरोध में संसद के सदनों को राजनैतिक सीढ़ी के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। उस घटना की जघन्यता पर जनता दुःख तो प्रकट कर रही है। किन्तु अंतिम निष्कर्ष जनता के बीच से क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया की संज्ञा के रूप में निकल रही है। इसलिए राजनीति को यह समझ लेने की आवश्यकता है कि जनता सब जानती है और संचार के संसाधनों में वृद्धि ने तो जनता को और सजग बना दिया है।
मणिपुर की घटना से भारत के हर राज्य की जनता भलिभांति परिचित है। इसलिए समाज में अब यह प्रश्न उठने लगा है कि बंगाल, बिहार, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के विषयों पर संसद में क्या चर्चा होनी आवश्यक नहीं है ? जनता ने अब यह कहना आरम्भ कर दिया है कि इन राज्यों के विषयों पर राजनीतिक रूदालियों के आंखों परनाले रीते क्यों पड़े हुए हैं ? क्या ये क्षेत्र भारतीय गणराज्य के अंग नहीं हैं ?
जनता की संभावनाओं में एक प्रश्न यह भी है कि यह पूरे क्षेत्र, विरोध की राजनीति के संधि सम्यक है..! इसलिए यहां की समस्याएं संसद की समस्या नहीं, अपितु समाज की अपनी समस्या है। अतः इन समस्याओं का निराकरण समाज को स्वयं निकालना पड़ेगा। इसलिए जनता से निकला निराकरण विरोध के राजनीति पर आगामी चुनाव में भारी पड़ सकता है।
जनता के बीच विमर्श की केन्द्र में बनी मणिपुर की घटना, कुछ माह पूर्व छत्तीसगढ़ में हुई, इसाई मिशनरी और आदिवासी समुदाय के बीच की घटना से मिलती जुलती ही है। छत्तीसगढ़ की घटना पर नियंत्रण पा लेना इसलिए सरल है कि यह क्षेत्र भारत के मध्य में है। यहां से किसी दूसरे देश की सीमा नहीं लगी हुई हैं। लेकिन मणिपुर से दूसरे देशों की सीमाएं भी मिलती हैं। इसलिए यहां की घटना पर नियंत्रण पाना चुनौतीपूर्ण कार्य है।
छत्तीसगढ़ हो या मणिपुर इन घटनाओं के उद्भव पर जनता का मत है कि एक ही परिवार में दो सदस्य इसाई बन जाएं और दो सदस्य हिन्दू परम्परा पर अपना विश्वास जताएं, तो उस परिवार में टकराव होना एक स्वभाविक क्रिया है और टकराव के बाद यदि पड़ोसी उसमें से एक पक्ष को शस्त्र सुविधा उपलब्ध करा दें, तो वही होगा जो आज देखने को मिल रहा है। इसलिए घटना संवेदनशील है और इस विषय पर राजनीति को भी संवेदना प्रकट करने की आवश्यकता है। नहीं तो पंच परमेश्वर के निर्णय का समय भी बहुत निटक है।