डिजिटल साक्षरता के अभाव में डिग्री कॉलेज के विद्यार्थी कर रहे हैं साइबर कैफे का रूख

अपने कारगुज़ारियों से प्रख्यात नगर मुख्यालय के चक्रधरनगर क्षेत्र में स्थित डिग्री कॉलेज के छात्र-छात्रा अपने नामांकन हेतु साइबर कैफे में भटक रहे हैं। इसका मुख्य कारण डिजिटल साक्षरता (digital literacy) की कमी प्राध्यापकों सहित छात्र-छात्राओं में होना बताया जा रहा है।

by Bhanu Pratap Mishra

बच्चों सहित प्राध्यापकों में भी डिजिटल साक्षरता (digital literacy) का है अभाव

अभिभावक द्वारा राशि भुगतान की प्रक्रिया पूछे जाने पर एफ.आई.आर. कराने की दी गयी धमकी

महाविद्यालय द्वारा निर्गत सूचना पत्र

रायगढ़ – अपने कारगुज़ारियों से प्रख्यात नगर मुख्यालय के चक्रधरनगर क्षेत्र में स्थित डिग्री कॉलेज के छात्र-छात्रा अपने नामांकन हेतु साइबर कैफे में भटक रहे हैं। इसका मुख्य कारण डिजिटल साक्षरता (digital literacy) की कमी प्राध्यापकों सहित छात्र-छात्राओं में होना बताया जा रहा है। जिसका प्रमाण महाविद्यालय द्वारा 20 जुलाई को निर्गत किए गए सूचना पत्र से भी मिलता है।

स्नातक तृतीय वर्ष के छा़त्र-छात्राओं के नामांकन हेतु निर्गत सूचना पत्र में पहली त्रुटि तो यह है कि 20 जुलाई को निर्गत सूचना पत्र में 19 जुलाई से 31 जुलाई तक तृतीय वर्ष में नामांकन के लिए समयावधि दी गयी है। दूसरी त्रुटि महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा निर्गत सूचना पत्र के निर्देश संख्या 2 में लिखा गया शुल्क रसीद में रसीद शब्द गलत है।

वहीं महाविद्यालय के 16 निर्देशों में से नामांकन हेतु फॉर्म और नामांकन के लिए किए जाने वाले राशि के भुगतान की प्रक्रिया का उल्लेख नहीं किया गया है। चूंकि फॉर्म और नामांकन हेतु राशि भुगतान की प्रक्रिया ऑनलाइन ही हो रहा है। इसलिए इस सूचना पत्र में फॉर्म और नामांकन के लिए ऑनलाइन भुगतान विद्यार्थी स्वयं कैसे कर सकते हैं। इस बात का उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है।

जिसके आभाव में विद्यार्थी महाविद्यालय के बाहर लगे साइबर कैफे से भुगतान करा रहे हैं, जो कि विद्यार्थियों के लिए खर्चीला हो रहा है। क्योंकि साइबर के संचालक इन्हीं कार्यों को करके अपनी आजीविका चलाते हैं। इसलिए महाविद्यालय को भुगतान की जाने वाली राशि से अधिकतम लगभग 300 रूपए प्रति विद्यार्थी को भुगतान करना पड़ रहा है।

इस विषय पर एक छात्रा के अभिभावक भानु प्रताप मिश्र ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनकी पुत्री को स्नातक तृतीय वर्ष में नामांकन लेना था, जो कि नगर में पत्रकारिता करते हैं और उनकी पुत्री उसी महाविद्यालय से स्नातक द्वितीय वर्ष उत्तीर्ण है। यही कारण है कि वे नामांकन हेतु भुगतान किस प्रक्रिया से कर सकते हैं, उसकी जानकारी लेने के लिए महाविद्यालय द्वारा बनाई गई प्राध्यापकों की समिति सहित प्राचार्य से बार-बार पूछते रहे।

जिसपर उनको एक ही उत्तर मिला कि साइबर कैफे में जा कर भुगतान करा लें। इस प्रक्रिया में प्रश्न पूछे जाने पर उनको एक महिला प्राध्यापक द्वारा एफ.आई.आर. की धमकी भी दी गयी। आखिरकार उन्होंने साइबर के एक संचालक से जानकारी लेकर स्वयं ही छात्रा के नामांकन शुल्क और नामांकन फॉर्म की राशि का भुगतान एसबीआई कलेक्ट पर जाकर किया। चूंकि उक्त महाविद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे ग्रामीण व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के होते हैं।

इसलिए उन्हें नामांकन शुल्क और नामांकन फॉर्म के लिए साइबर कैफे में जाकर निर्धारित राशि से लगभग 300 रूपए अधिक भुगतान करना बोझ की भांति लग रहा है। इस पूरे घटनाक्रम पर नजर डालें तो इसमें सबसे अधिक प्राध्यापकों में डिजिटल साक्षरता (digital literacy)न होना प्रतीत होता है। वही हिंदी से जुड़ी वर्तनी संबंधी त्रुटि महाविद्यालय के हिंदी विभाग पर प्रश्न खड़ा करता है। इसके अतिरिक्त सूचना पत्र में निर्गत दिनांक से पूर्व नामांकन दिनांक का होना एक गंभीर प्रश्न है। जिसका स्पष्टीकरण महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा छात्रों को दिया जाना चाहिए।

फॉर्म की राशि भुगतान के लिए भटकते छात्र व उनके अभिभावक

ऑफलाइन के फॉर्म का ऑनलाइन करना पड़ रहा है पेमेंट
बच्चों या बच्चों के अभिभावकों को नामांकन के लिए सबसे पहले बाहर के साइबर कैफे से 5 रूपए में ऑफलाइन मोड का फॉर्म खरीदना पड़ रहा है। उस फॉर्म को ऑफलाइन मोड में ही भरने के बाद प्राध्यापकों की बनी समिति के सदस्यों को दिखाना पड़ रहा है और उनके स्वीकृति के पश्चात् उस फॉर्म का 50 रूपए, ऑनलाइन मोड में जाकर एसबीआई कलेक्ट से पेमेंट करना पड़ रहा है। इसमें पहली त्रुटि तो यह है कि महाविद्यालय द्वारा दिए गए निर्देश पर बाहर से 5 रूपये में फॉर्म खरीदना पड़ रहा है और उसी फॉर्म का 50 रूपए ऑनलाइन मोड से पेमेंट भी कराया जा रहा है। इस विषय में जानकारी मांगने पर महाविद्यालय का तर्क यह है कि फॉर्म के जांच में यह पैसे खर्च होते हैं। अब प्रश्न यह भी उठता है कि लगभग 4500 छात्रों से लिया गया 50-50 रूपए 225000/- हो जाता है। जिसको महाविद्यालय द्वारा फॉर्म के जांच में खर्च होना बताया जाता है।

क्या कहते हैं विश्वविद्यालय के कुलपति
यह महाविद्यालय शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय के अधीन संचालित होता है। इसलिए उस अभिभावक द्वारा विश्वविद्यालय के कुलपति से मिलकर पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया गया। जिसपर कुलपति डॉ. ललित पटेरिया ने कहा कि प्रथम वर्ष के नामांकन का निगरानी विश्वविद्यालय द्वारा किया जाता है। वहीं द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष का नामांकन महाविद्यालय के निगरानी में किया जाता है। इसलिए नामांकन के लिए किए, जाने वाले भुगतान हेतु सूचना पत्र में ऑनलाइन प्रक्रिया का उल्लेख न होना महाविद्यालय की त्रुटि या डिजिटल जानकारी का अभाव हो सकता है।

उच्च शिक्षा मंत्री से भी संपर्क करने का किया गया प्रयास
जिले के विधानसभा खरसिया के विधायक व छत्तीसगढ़ शासन में उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल से भी इस विषय में अभिभावक ने संपर्क करने का प्रयास किया। चूंकि विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा है। इसलिए अभिभावक का उच्च शिक्षा मंत्री से संपर्क नहीं हो पाया।

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