नेता जी की गेड़ी, सत्ता की है सीढ़ी..!
भानु प्रताप मिश्र
छत्तीसगढ़ के लोक आस्था का उत्सव हरेली, श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को किसानों द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है। इस उत्सव में किसान कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं और देशी स्वरूप में ग्रामीण खेलों के माध्यम से सामाजिक मनोरंजन की भी एक पुरानी परम्परा लोक चेतना का अंग है। लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने सत्ता में आते ही इन लोक चेतना से उत्पन्न खेलों को राजनैतिक लाभ के लिए प्रतिकात्मक स्वरूप में प्रयोग करना आरम्भ किया।
जिसके माध्यम से छत्तीसगढ़ी अस्मिता को धार देने का कार्य किया जाने लगा। जिसपर विशेषज्ञ कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी अस्मिता के रूप में ऐसे प्रयोग किए जाने को प्रयोगात्मक मान सकते हैं। किन्तु आवश्यक यह था कि इसके साथ-साथ छत्तीसगढ़ के लोगों के जीवन को उत्कृष्ट बनाने के लिए भी यदि कार्य किए जाते, तो यह प्रयोग पूर्ण रूप से सफल होता।
मूल रूप से राजनीति के लिए छत्तीसगढ़ी अस्मिता एक राजनीतिक उपकरण है, जिसके माध्यम से लोगों के संवेदनाओं को स्पर्श करते हुए, उनको अपने राजनीतिक खांचे में बैठाकर रखा जा सके। लेकिन राजनीति में उपयोग होने वाले संकेतों और नारों का अर्थ समझने में कुछ ही दिन लगते हैं। ऐसा नहीं होता कि राजनीति में उपयोग किए जाने वाले नारे व संकेतों का अर्थ समझने में अन्य राजनैतिक दलों को दशकों लग जाए।
संकेत निकलते ही उस संकेत के अर्थ को अन्य राजनैतिक दल समझ जाते हैं। किन्तु अन्य राजनैतिक दल समय की प्रतिक्षा में रहते हैं कि समय आने पर उनके द्वारा भी उन संकेतों का उत्तर दिया जाएगा। इस विषय पर विशेषज्ञ कहते हैं कि भाजपा ने छत्तीसगढ़ के प्रदेश कार्यालय सहित जिला कार्यालयों में भी हरेली उत्सव इस बार मनाया और लोक चेतना से निकले गेड़ी सहित अन्य लोक खेलों से लोगों में संदेश देने का कार्य किया कि कांग्रेस केवल मौखिक रूप से छत्तीसगढ़ी अस्मिता की बात करती है।
वह छत्तीसगढ़ के लोगों के जीवन को उत्कृष्ट बनाने के लिए कोई कार्य नहीं कर रही है। उसके उदाहरण में राज्य सभा भेजे जाने वाले राजीव शुक्ला और रंजीता रंजन का नाम प्रस्तुत भी करते रहती है। बहरहाल राजनीति के चौसर पर चाल तो दोनों ओर से चले जाएंगे। लेकिन चर्चा गम्भीर इसलिए हो जाती है कि आगे विधानसभा का चुनाव है और इस चुनाव में खेलों के बहस में जनता की समस्याएं गौण न हो जाएं।
इस विषय को लेकर जनता के बीच चर्चा का दौर पान के ठेलों और चाय के दुकानों पर जोरों से चल रही है। कहीं नेता जी की गेड़ी पर जनता की समस्याएं भारी न पड़ जाएं। इसलिए कहा जाता है कि राजनीति में प्रयोग उल्टे पड़ने से भूल सुधार के लिए पांच वर्षों की लम्बी अवधि लगती है।
नेता जी की गेड़ी पर स्थानीय मुद्दे की स्थिति
चुनाव के नजदीक होने के कारण राजनैतिक दलों में अब हलचल देखी जा रही है। चूंकि छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधी लड़ाई है। लेकिन अन्य राजनैतिक दल भी अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए पिछले चुनावों से संघर्षशील हैं। जिसमें जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे), बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सहित आम आदमी पार्टी भी, अब नेती जी के गेड़ी के खेल को लेकर जनता के बीच जा रही है।
वे जनता के बीच जाकर बात तो अपनी करते हैं, किन्तु गेड़ी के खेल का राजनैतिक उपयोग एक राजनैतिक हथकंडा है, यह बताना नहीं भूलते हैं। लगे हाथ यह भी कह देते हैं कि अपने भ्रष्ट व्यवस्था को छुपाने के लिए गेड़ी के खेल को राजनीति में उपयोग किया जा रहा है, जिसके माध्यम से लोक आस्था से उत्पन्न जनता के संवेदनाओं को स्पर्श करना मात्र उद्देश्य है।
जिससे की अपने राजनैतिक कमियों को उसी के आड़ में वे ढकने का प्रयास कर रहे हैं। ताकि जनता उनको अपना समझे और उनके सभी कमियों के लिए क्षमा दान दे कर पुनः सत्ता पर बैठा दे। लेकिन ऐसा नहीं होने वाला, क्योंकि जनता अपने लोक आस्था में राजनीति का मिश्रण नहीं चाहती है।
बहरहाल यह राजनीति है और इसमें आरोप प्रत्यारोप तो चलते ही रहते हैं। छत्तीसगढ़ में हरेली मनाया गया और गांवों में वर्षों से चली आ रही परम्परा के अनुसार ही हरेली मनी। अब धीरे-धीरे राजनीतिक हरेली के प्रभाव के आकलन का समय नजदीक आ रहा है। जिसका परिणाम भविष्य के गर्त में है।
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