राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा

by Bhanu Pratap Mishra

सामाजिक समरसता, स्वत्व और शुचिता आधारित आर्थिक विकास का संकल्प

इस वर्ष एक लाख स्थानों तक पहुँचने का लक्ष्य

रमेश शर्मा

हाल ही संपन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा ने तीन महत्वपूर्ण आयामों पर कार्य करने का संकल्प व्यक्त किया । पहला भारत राष्ट्र के आर्थिक विकास की योजनाओं और समाज जीवन में शुचिता लाने, दूसरा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के स्वत्व का जागरण केलिये पाँच सूत्रीय कार्य और तीसरा आगामी एक वर्ष में देश के एक लाख स्थानों तक संघ कार्य आरंभ करने का संकल्प व्यक्त किया गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वर्ष में दो बड़ी बैठकें होतीं हैं। एक दशहरा दीपावली के आसपास कार्यकारी मंडल और दूसरी नवसंवत्सर के आसपास यह प्रतिनिधि सभा। इस वर्ष यह बैठक हरियाणा के पानीपत जिला अंतर्गत समालसा के पट्टीकल्याणा में संपन्न हुई। तीन दिन चली इस प्रतिनिधि सभा में संघ से संबंधित 34 संगठनों के 1474 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रतिनिधि सभा ने सबसे पहले अपने गत वर्ष किये गये कार्यों की समीक्षा की । इसमें संगठनात्मक स्वरूप के विस्तार एवं पिछली प्रतिनिधि सभा के प्रस्तावों के क्रियान्वयन की प्रगति समीक्षा की। फिर आगामी वर्ष केलिये कार्य योजना बनी । पिछली कार्य समीक्षा में संघ के कार्यों और विभिन्न नगरों और प्राँतों में संगठनात्मक स्वरूप का भी विवरण आया। बैठक में किशोर एवं युवा आयु समूह के स्वयंसेवक जुड़ने पर संतोष व्यक्त किया गया । संघ की यह विशेषता है कि वह भविष्य की कार्य योजना बनाने से पहले अपने संगठनात्मक स्वरूप और पिछली बैठकों के निर्णयों, प्रस्तावों और संकल्पों की समीक्षा करता है ।

संघ की दूसरी विशेषता है कि वह अपने ऊपर लगे आरोपों का कोई उत्तर नहीं देता और न हमलों से विचलित होता है । सेवा और समर्पण उसके कार्यकर्ताओं का संकल्प होता है । संभवतः यही उसकी शक्ति और निरंतर विस्तार का रहस्य भी है कि हजार विरोधों के बावजूद वह गतिमान है न दिशा बदली, न सिद्धांत बदला और न लक्ष्य । इस बैठक में भी संघ पर लगे आरोपों पर कोई विश्लेषण नहीं हुआ । संघ के समर्पित स्वयं सेवकों के बलिदान और राष्ट्र विभूतियों के निधन पर श्रृद्धाँजलियों के साथ कार्यों की समीक्षा और भविष्य की कार्य योजना बनी।

यह बैठक कयी मायनों में महत्वपूर्ण थी । एक तो देश में कतिपय निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा भारतीय समाज जीवन के ताने बाने को तोड़कर राष्ट्र को क्षति पहुँचाने का जो षड्यंत्र किया जा रहा है उससे समाज को कैसे सावधान किया जाय यह विचार का प्रमुख विन्दु रहा । इस समय देश में पुनः सामाजिक विभेद उत्पन्न का वातावरण बनाया जा रहा है । इससे समाज और राष्ट्रीय भाव में विखराव आ सकता है जिससे देश की प्रगति और प्रतिष्ठा दोनों प्रभावित होगी । इसके लिये संघ ने कुल पाँच सूत्रीय कार्यक्रम बनाया है ।

जिसमें सामाजिक समरसता के लिये संगोष्ठी, सामाजिक मिलन कार्यक्रम, परिवार प्रबंध पर भी संगोष्ठी और मिलन, पर्यावरण संरक्षण के लिये जागरण अभियान, आत्मनिर्भरता के लिये स्वदेशी और स्वत्व जागरण अभियान और नागरिक कर्तव्य बोध का अभियान चलाना प्रमुख है । भारत की स्वतंत्रता को 75 वर्ष बीत गये हैं । भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है । पर कितने विषय हैं जिनमें भारत और भारतीय समाज स्वाधीन नहीं हो पाया आत्मनिर्भर नहीं बन पाया । इसका कारण कहीं न कहीं स्वत्व और स्वदेशी चिंतन का अभाव रहा है । संघ के ये पाँच सूत्रीय कार्यक्रम इस भाव को जगाने में सहायक होंगे।

संघ अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष आयोजन की तैयारी कर रहा है । 2025 में उसकी स्थापना के सौ वर्ष पूरे होंगे । संघ की इस बैठक में लिये गये संकल्पों में अपनी शताब्दी वर्ष के उत्सव आयोजन भर नहीं है अपितु उसने अपने शताब्दी आयोजन में भारत राष्ट्र की आत्मनिर्भरता का लक्ष्य भी निर्धारित किया है । इसलिए इस बैठक में आगामी दो वर्षों के कार्यों की पूरी रूपरेखा पर विचार किया गया है । कर एक वर्ष की कार्य योजना को अंतिम रूप दिया गया । इसलिए वर्तमान संदर्भ में समाज और राष्ट्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों सभी स्वरूपों पर विचार हुआ । जिनमें समाज और राष्ट्र के आर्थिक विकास की दिशा कैसी हो, व्यक्ति समाज और राष्ट्र का स्वत्व जागरण कैसे हो जैसे विषयों पर विचार हुआ इसके लिये संघ के कार्य विस्तार की योजना बनी ।

स्व आधारित विकास का संकल्प

प्रतिनिधि सभा ने अपना यह मत दोहराया कि विदेशी आक्रमणों और आंतरिक संघर्ष के बीच यदि भारत में उसकी साँस्कृतिक पहचान सुरक्षित है तो यह “स्व” आंतरिक प्रेरणा के कारण ही संभव रह सका । और भविष्य में यही भाव भारत को विश्व शक्ति और सम्मान के लक्ष्य को पूरा करेगा। संघ ने माना कि संघर्ष काल में पूज्य संतों व महापुरुषों के नेतृत्व ने संघर्षरत समाज के ‘स्व’ को बचाए रखा।

और इसी प्रेरणा में स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज की ‘स्व’ त्रयी में निहित थी । इसलिए संघ ने इस “स्वत्रियी” भाव के जागरण पर जोर दिया । इसमें भारत राष्ट्र की परंपराएँ, साँस्कृतिक स्वरूप और उन महापुरुषों की स्मृतियाँ संजोना जिनका जीवन राष्ट्र के स्वत्व केलिये रहा । बैठक में सभी अनुसाँघिक संगठनों से अपेक्षा की गई कि वे स्थानीय स्तर पर अपने क्षेत्र में वर्ष भर इन विषयों से संबंधित आयोजन करें। प्रतिनिधि सभा ने इस बात को भी रेखांकित किया कि जहाँ अनेक देश भारत की ओर सम्मान और सद्भाव रखते हैं।

वहीं भारत के ‘स्व’ आधारित इस पुनरुत्थान को विश्व की कुछ शक्तियाँ स्वीकार नहीं कर पा रहीं हैं। वे भारत विरोध के बहाने ढूंढती हैं और ऐसी शक्तियाँ देश के भीतर भी हैं और बाहर भी। ऐसी तत्व व्यक्तिगत स्वार्थ और भेदों को उभार कर समाज में परस्पर अविश्वास पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं, हिन्दुत्व पर नये नये प्रश्न खड़े कर रहे हैं, तंत्र के प्रति अनास्था और देश में अराजकता पैदा करने के नए-नए षड्यंत्र रच रहीं हैं। इन सबके प्रति सामाजिक जागरूकता केलिये भी आयोजन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया ।

शुचिता आधारित आर्थिक विकास

आर्थिक विकास व्यक्ति का हो, समाज का हो अथवा राष्ट्र का । उसमें शुचिता और सात्विकता होनी चाहिए। कदाचार, अनैतिक अथवा असामान्य तरीके का विकास स्थायी नहीं होता । चीन और पाकिस्तान की गिरती अर्थ स्थिति इसके उदाहरण हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के पहले दिन से भारत राष्ट्र के स्थायी गौरव की प्रतिष्ठापना केलिये संकल्पबद्ध रहा है । इन दिनों विश्व में भारत एक उभरती अर्थ शक्ति है । प्रतिनिधि सभा में विचार के लिये यह पक्ष भी आया ।

सभा में इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि स्वाधीनता प्राप्ति के उपरांत भारत ने अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। और आज भारत विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरें है। पर साथ ही सभा ने समाज और राष्ट्र की नीति निर्धारकों से अपेक्षा की कि आर्थिक नीतियाँ शुचिता और सकारात्मक सिध्दांत के आधार पर होनीं चाहिए। प्रतिनिधि सभा ने यह निर्णय भी लिया कि आर्थिक विकास में शुचिता की प्रधानता केलिये भी सामाजिक जागरण अभियान चलाया जायेगा।

परिवार परंपरा को सशक्त करना की आवश्यक

परिवार और कुटुम्ब परंपरा भारत की विशाष्टता है । परिवार के सामूहिक वातावरण में विकसित बच्चों में एक विशिष्ठ संतुलन और समन्वय होता है । जो एकल परिवार में नहीं होता । आज पूरा विश्व भारत के सनातन मूल्यों के आधार पर होने वाले नवोत्थान को विश्व स्वीकार कर रहा है। और परिवार परंपरा पर शोध कर रहा है । ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भारतीय अवधारणा को हि विश्व शांति, विश्व बंधुत्व और मानव कल्याण के लिए महत्वपूर्ण मान रहा है । तब भारत की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है ।

प्रतिनिधि सभा ने इस परिवार परंपरा को और सशक्त बनाने का अभियान में और तेजी लाने का भी मत व्यक्त किया गया । प्रतिनिधि सभा ने राष्ट्र के नवोत्थान के लिए परिवार संस्था का दृढ़ीकरण, बंधुता पर आधारित समरस समाज का निर्माण तथा स्वदेशी भाव के साथ उद्यमिता का विकास आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष प्रयास करने का संकल्प व्यक्त किया ।

प्रतिनिधि सभा का समाज से आव्हान

प्रतिनिधि सभा ने यह संकल्प भी व्यक्त किया कि अमृतकाल हमें भारत को वैश्विक नेतृत्व प्राप्त कराने के लिए सामूहिक उद्यम करने का अवसर प्रदान कर रहा है। अतएव यह आवश्यक है कि भारतीय चिंतन के अनुरूप सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक, न्यायिक संस्थाओं सहित समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में कालसुसंगत रचनाएँ विकसित करने के इस कार्य में संपूर्ण शक्ति से सहभागी हो, जिससे भारत विश्वमंच पर एक समर्थ, वैभवशाली और कल्याणकारी राष्ट्र के रूप में समुचित स्थान प्राप्त कर सके।

एक लाख स्थानों तक संघ कार्य विस्तार

प्रतिनिधि सभा ने इस एक वर्ष में अपने कार्य विस्तार का भी लक्ष्य निर्धारित किया । अभी संघ 71355 स्थानों पर प्रत्यक्ष तौर से समाज सेवा कार्यों में अपनी भूमिका निभा रहा है। सभा ने अगले एक वर्ष में इस कार्य का विस्तार कर एक लाख स्थानों तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह संघ के कार्यकर्ताओं का सेवा कार्य के प्रति समर्पण का भाव है कि वर्ष 2020 में कोरोना आपदा के कारण जहाँ लगभग सभी संस्थाओं का कार्य प्रभावित हुआ वहीं संघ कार्य का विस्तार हुआ । 2020 में 38913 स्थानों पर 62491 शाखा, 20303 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन व 8732 स्थानों पर मासिक मंडली चल रही थी।

2023 में यह संख्या बढक़र 42613 स्थानों पर 68651 शाखाएं, 26877 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन तथा 10412 स्थानों पर मासिक मंडली तक पहुंच गई है। संघ दृष्टि से देशभर में 911 जिले हैं, जिनमें से 901 जिलों में संघ का प्रत्यक्ष कार्य चलता है। 6663 खंडों में से 88 प्रतिशत खंडों में, 59326 मंडलों में से 26498 मंडलों में संघ की प्रत्यक्ष शाखाएं लगती हैं। शताब्दी वर्ष में संघ कार्य को बढ़ाने के लिए संघ के नियमित प्रचारकों व विस्तारकों के अतिरिक्त 1300 कार्यकर्ता दो वर्ष के लिए शताब्दी विस्तारक निकले हैं।


संघ कार्य विस्तार का एक कारण यह भी है कि संघ कार्य में अधिकांश सहभागिता युवाओं की हैं। संघ 60 प्रतिशत शाखाएं विद्यार्थी वर्ग की हैं। पिछले एक वर्ष में 121137 युवाओं ने संघ का प्राथमिक शिक्षण प्राप्त किया है। आगामी वर्ष की योजना में देशभर में संघ शिक्षण के 109 शिक्षण वर्ग लगाने की योजना है । जिसमें प्रशिक्षण के लिये लगभग 20 हजार स्वयंसेवकों के भाग लेने की संभावना है ।

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