स्वच्छता के लिए प्रतिकों के रूप में चलाया जाने वाला अभियान मात्र अभिनय का एक उपक्रम है। जिसके माध्यम से जनता में संदेश देने का उद्देश्य कम और मीडिया में अभिनय के माध्यम से स्थान बनाने का उद्देश्य अधिक होता है। इसलिए यह स्वभाविक है कि उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा इस प्रकार का अभिनय भी अधिक पारंगतता से किया जाता है। इस प्रकार के अभिनय से ऐसा प्रतीत होता है कि समाज में उनके द्वारा सकारात्मक संदेश भेजने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन अन्य मुद्दे गौण हो तो इसे अभिनय ही कहा जा सकता है।
अवधेश कुमार ‘अवध’
स्वच्छता अभियान जैसे प्रतिष्ठित स्वनामधन्य को हम जैसे दे ठेठ देहाती लोग सफाई के नाम से गुहराते हैं। हमें सदियों से गंदगी फैलाने की आदत विरासत में मिली है इसीलिए सफाई का हो- हल्ला भी मचाना ही पड़ता है। शासन – प्रशासन के सक्षम मुखिया से नाता जोड़ने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि हमारे पड़ोसी हमारी अकड़ के नीचे स्यमेव आ जाते हैं।
आज की कमरतोड़ महँगाई के दौर में किसी ‘बड़े’ को बुलाना और खुश करके विदा करना आसान नहीं होता। फूल माला मिठाई में हजारों का वारा न्यारा हो जाता है। और सबसे बड़ी मुसीबत तो यह कि सवा सौ करोड़ की आबादी के होते हुए भी मौके पर दर्जन – दो दर्जन भर भीड़ भी नहीं जुटती। ऐसे में सबसे सस्ता सुन्दर व टिकाऊ तरीका है सफाई अभियान।
दो – चार माला, कुछ झाड़ू, एक कैमरामैन और एक चालू पूर्जा मुख्य अतिथि का जुगाड़ कर लेना है। अरे, मैं तो भूल ही गया…. कुछ कूड़े और मुख्य मार्ग पर तिराली या चौराहा का चयन। बस श्रीगणेश कर ही दीजिए। मुझे लगता है कि भीड़ को लेकर आप चिंता में हैं….! बिना आदत के झाड़ू जब सड़क पर तांडव मचाएँगे तो आते – जाते लोग कुछ उत्सुकतावश और कुछ झाड़ू के प्रकीर्णन – प्रकोप से डरकर रुकेंगे ही
और भीड़ तैयार……..। सफाई अभिनय का प्रमुख हथियार झाड़ू होते हैं जिसे ‘कूचा’ के नाम से भी जानते हैं। जरा याददास्त पर जोर देकर सोचिए तो स्वच्छता के रास्ते हरिजन उद्धार करने वाले हमारे बापू कितने आसानी से फेमस हुए थे! बोफोर्स घोटाला के जमाने में इसी झाड़ू (कूचा) को उठा लिए थे अपने विश्वनाथ प्रताप सिंह। दो ही साल के अभिनय से सीधे प्रधान मन्त्री बन गए।
वर्षों तक झाड़ू की सुधि किसी को नहीं आई। गंदगी बढ़ने का इंतज़ार होता रहा। फिर अचानक केजरीवाल ने न सिर्फ उठा लिया बल्कि ताबड़तोड़ हर तरफ लगाने भी लगे। कुछ लोगों के चेहरे से नकाब हटे तो कुछ चेहरे पर छिटक कर कीचड़ भी पुते और हो गया केजरीवाल का कल्याण। इसके समानान्तर मोदी भी लपके। दोनों में छीना- झपटी भी हुई पर छप्पन इंची का सीना विजयी रहा।
वैसे सच कहें तो केजरीवाल झाड़ू से अब बोझिल भी थे इसलिए मोदी को ले जाने दिए। यह सफाई अभिनय और झाड़ू भी क्या चीज है! साफ को और भी साफ किया जाता है। जाहिर सी बात है कि गंदा तो और भी गंदा होगा न। निराला का गुलाब चमक जाता है और कुकुरमुत्ता पर आती है गुलाब के हिस्से की भी गंदगी। जब -जब इस अभिनय ने अँगड़ाई ली, कुछ का भला हो गया।
सारे प्रायोजित और वास्तविक कूड़े उसके ऊपर आकर गिरे जो खुद गंदे हैं मगर गंदगी नहीं फैलाते। समाज के निचले तबके के नाम से कुख्यात हैं ये। ‘गरीब वोट बैंक’ नामक संज्ञा के रूप में सबको लुभाते हैं। अपने भगीरथ परिश्रम से जब कभी उठने का प्रयास करते हैं, कोई न कोई सफाई अभिनय का प्रदर्शन शुरु कर देता है। सारा कूड़ा इनके ऊपर गिरता है और ये पुन: कूड़े का ढेर बना दिये जाते हैं कुछ वर्षों के लिए ताकि सफाई अभिनय समय – समय पर चलता रहे।