भानु प्रताप मिश्र
सम्पादकीय आलेखों से पत्र-पत्रिकाओं की अपनी पहचान होती है। सम्पादकीय को पत्र-पत्रिकाओं का आत्मा भी कहा जाता है। सम्पादकीय लेखों द्वारा पत्र-पत्रिकाएँ लोगों में युगीन चेतना भरने का कार्य करती हैं और सम्पादकीय पृष्ठ लोक शिक्षण तथा जन-जागरण का माध्यम होता है। प्रायः सभी समाचार-पत्रों के बीच में सम्पादकीय पृष्ठ होता है।
इस पृष्ठ पर एक या दो आलेख होते हैं। साथ ही इस पृष्ठ पर दो-तीन प्रचलित स्तम्भ होते हैं तथा इस पृष्ठ पर सम्पादक के नाम प्रेषित पत्र भी होते हैं। इस पृष्ठ के माध्यम से पत्र तत्कालीन प्रचलित घटनाओं का सकारात्मक या समालोचनात्मक विश्लेषण करता है। जो समकालीन प्रसिद्ध विद्वानों और लेखकों द्वारा लिखा गया होता है।
सम्पादकीय लेख के तत्व
1. व्याख्या 2. समालोचना
3. सहमति 4. प्रस्तुति
सम्पादकीय पृष्ठ पर लिखे गये लेख व्याख्यात्मक और समालोचनात्मक तो होते ही हैं। इन लेखों में समकालीन घटनाओं पर लेखक व्याख्यात्मक ढंग से समालोचना भी प्रस्तुत करता है। साथ ही साथ शासन और प्रशासन द्वारा किये कार्यों के प्रति सहमति या असहमति को व्यक्त करते हुए, साहित्यिक शैली के उपयोग से रूचिकर प्रस्तुति के साथ जन सामान्य के समक्ष विचारों को रखता है।
अतः सम्पादकीय पृष्ठ पर लिखे गये लेखों के माध्यम से सम्पादक, विचारों में घटनाओं के हर पहलुओं को स्पर्श करते हुए, घटनाओं को विश्लेषणात्क ढंग से समालोचना, आलोचना और सहमति या असहमति प्रस्तुत करता है।
इन लेखों में प्रस्तुतीकरण की उत्कृष्ट शैली भी देखने को मिलती है। इसे कुछ इस प्रकार भी कह सकते हैं कि सम्पादकीय में या सम्पादकीय पृष्ठों पर लिखे गये आलेखों में साहित्य का भी उपयोग किया जाता है। इस पृष्ठ पर संतुलन बनाये रखना और आलोचना भी सधे हुए शब्दों में की जाती है। अर्थात् विश्लेषण भी संयमित शब्दों में ही किया जाता है।
सम्पादकीय आलेख के दिशा-निर्देश
(1) सम्पादकीय पृष्ठों पर प्रकाशित होने वाले आलेख, अन्य समाचारों और स्तम्भों से भिन्न होते हैं, क्योंकि इन आलेखों में विशेष घटनाओं का विश्लेषण होता है। जो कि सम्पादक मण्डल द्वारा लिखा गया होता है।
सम्पादक मण्डल को यह स्वतंत्रता होती है कि वह अपने विचारों को बिना किसी भय सम्पादकीय पृष्ठ पर अभिव्यक्त कर सके। लेकिन विचारों में पूर्वाग्रह या पक्षपात आदि से बचने जैसी प्रमुख बिन्दुओं को सम्पादन मंडल ध्यान में रखकर संपादकीय पृष्ठ के लिए लेखों को लिखता है या चयनीत करता है।
(2) सम्पादकीय आलेखों में किसी व्यक्ति, संस्था आदि की मानहानि या किसी व्यक्ति संस्था की चाटुकारिता परिलक्षित न हो, इस पर विशेष ध्यान सम्पादकीय मंडल द्वारा दिया जाता है।
(3) सामुदायिक तथा क्षेत्रीय मुद्दों के सम्बन्ध में लिखते समय सम्पादकीय मण्डल द्वारा पर्याप्त सावधानी एवं सतर्कता बरती जाती है। जिससे किसी की धार्मिक भावना या क्षेत्रीय लगाव को ठेस न पहुँचे। चूँकि सम्पादकीय मण्डल में काफी अनुभवी और सुलझे हुए कलमकार रहते हैं। इसलिए वे इन विषयों पर आधारित मानक को बनाए रखते हैं।
(4) सम्पादकीय आलेखों में विधानसभा, संसद अथवा न्यायालय के सम्मान को ठेस न पहुँचे, इसे भी ध्यान में रखकर सम्पदक मण्डल द्वारा सम्पादकीय पृष्ठ के लिए आलेखों को लिखा या चयनित किया जाता है।
सम्पादकीय मण्डल की संरचना
हम पूर्व में विमर्श कर चुके हैं कि सम्पादकीय आलेखों को हमेशा समाचार-पत्र, पत्रिकाओं के सम्पादकों द्वारा ही नहीं लिखा जाता है, बल्कि बड़ी-बड़ी, पत्र-पत्रिकाओं में इस काम के लिए सम्पादकीय लेखकों, आलेख लेखकों एवं सहायक सम्पादकों का एक मण्डल होता है।
जिसमें कुछ प्रमुख क्षेत्रों के विशेषज्ञ जैसे – समाज शास्त्र के विशेषज्ञ, विधि विशेषज्ञ, अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ, अन्तर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ, आपदा प्रबन्धन के विशेषज्ञ, शिक्षा के विशेषज्ञ सहित एजेंसियों का भी सहयोग लिया जाता है। सम्पादकीय लेखन में पत्र-पत्रिकाओं के लिए जो विशेषज्ञ लिखते हैं, वे समाज में घटित-घटनाओं पर अपनी दृष्टि से विश्लेषण करके लेखन का कार्य करते हैं।
पत्रों में फीचर डेस्क : भारत सहित विश्व में समाचार-पत्रों और मीडिया के अन्य माध्यमों में फीचर बहुत महत्वपूर्ण विधा हो गया है। इसका कारण मात्र यह है कि फीचर पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यही कारण है कि समाचार-पत्रों में फीचर का एक अलग से डेस्क होता है और इस डेस्क पर आने वाले कहानियों, बाल कथाओं, आलेखों, व्यंग्य और फीचर के सम्पादन के लिए एक व्यक्ति नियुक्त होता है।
जो कि साहित्य के हर विधाओं का जानकार होता है। उस व्यक्ति को समाचार सम्पादक ही कहा जाता है। लेकिन उसको साहित्य के सभी विधाओं की विशेष जानकारी रहती है। जैसे – कहानी, आलेख, व्यंग्य, फीचर और कविता तथा बाल साहित्य आदि विधाओं की जानकारी रहती है। वही इस प्रकार के साहित्यों को समाचार-पत्रों के नीति के अनुरूप सम्पादित करके प्रकाशन योग्य बनाता है।
समाचार-पत्रों में विशेष दिनों पर चार या आठ पृष्ठ का विशेषांक प्रकाशित किया जाता है। इसी प्रकार के विशेषांकों में इस प्रकार के साहित्यों का उपयोग किया जाता है और उससे ही इस प्रकार के विशेषांक को तैयार कर प्रकाशित किया जाता है। जैसे – रविवारीय, चौपाल, बाल परिशिष्ट, महिला विशेषांक आदि प्रकाशित होता है। इस डेस्क द्वारा केवल फीचर के श्रेणी में आने वाले विशेषांकों को तैयार किया जाता है।
वहीं इस डेस्क का कार्य इस विधा में लिखने वाले साहित्कारों से सतत् सम्पर्क बनाये रखना भी होता है। क्योंकि इसके हर विशेषांक में साहित्यों या कहानियों की आवश्यकता होती है और एक चुनौती यह भी होती है कि पत्र के नीति के अनुरूप ही फीचर तैयार किये जाते हैं। इन कार्यों को सम्पादक के मार्गदर्शन में सफलता पूर्वक, यह डेस्क निष्पादित करता है। इस डेस्क पर कार्य करने वाले समाचार सम्पादक की भाषायी और साहित्यिक समझ अच्छी होनी आवश्यक होती है।