वाम विचारों ने पत्रकारिता के पाठ्यक्रम को किस प्रकार किया प्रभावित

पत्रकारिता में वाम विचारों का प्रभाव

by Bhanu Pratap Mishra

भानु प्रताप मिश्र

पत्रकारिता में मूल रूप से मीडिया के सभी स्वरूपों का उपयोग करके समाज में संदेश भेजने का कार्य किया जाता है। इस कार्य पर अर्थात् पत्रकारिता में वाम विचारों का प्रभाव इतना अधिक है कि संदेशों के पीछे की मनसा को आम व्यक्ति समझ ही नहीं सकता है। इसका मूल कारण पत्रकारिता के पाठ्यक्रम को संचालित करने वाले विश्वविद्यालयों से लेकर पत्रकारिता के पाठ्यक्रम तक में वह विचार धुला मिला हुआ है। अतः पत्रकारिता समाज के सांस्कृतिक स्वरूप में संदेश देता है। वह विचार अन्दर से उस संस्कृति को प्रभावित कर रहा होता है।

भारतीय संचार यात्रा में उसके मिश्रण को डिकोड करने का किया गया प्रभाव

अन्तर वैयक्तिक संचार की परिभाषा देते हुए केवल जे कुमार भारत में जनसंचार नामक पुस्तक के पृष्ठ संख्या 12 पर लिखते हैं कि कानरैड लार्नेड और डेसमंड मारिस ने बताया कि किस तरह जानवर और पक्षी तक अचानक हिंसक हो उठते हैं, जब उनके क्षेत्र में कोई और जानवर या पक्षी अतिक्रमण करता है। ऐसे में विरोध और संघर्ष होता है, जो कि हिंसक रूप भी धारण कर सकता है। इंसान भी ऐसा ही व्यवहार करता है, जब उसकी निजी स्वतंत्रता का हनन होता है। 

वे आगे लिखते हैं कि यूरोपीय संस्कृति में ज्यादा करीब आना संचार और तौर तरीका दोनों के लिहाज से असभ्यता माना जाता है। जब तक कि व्यक्ति को दूसरे के निजी दायरे में पहुँचने की स्पष्ट इजाजत नहीं मिल जाती है। हालाँकि भारत और अरब जगत में अन्तर वैयक्तिक संचार के वक्त शारीरिक निकटता आमतौर पर असभ्यता नहीं मानी जाती।

मैं अरब जगत को तो नहीं जानता हूँ। इसलिए अरब जगत के व्यवहारों पर बात करना मेरे लिए उचित नहीं होगा और अरब जगत की बात मैं इस विमर्श में करूँगा भी नहीं। मैं चूँकि भारत से हूँ, इसलिए इस विचार पर असहमति जताना मुझे आवश्यक लगा। यही कारण है कि मैं इस विचार पर असहमति जता रहा हूँ। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि भारत के विषय में इस प्रकार की धारणा अपने आप में हास्यास्पद है।

जो भारत के गाँवों में गया न हो या जिसने भारत को सिर्फ पुस्तकों में पढ़ा हो और पुस्तकें भी वही पढ़ी हों, जो उन बुद्धिजीवियों के विचारों के अनुरूप हो। वही भारत के विषय में ऐसी धारणा का सृजन कर सकते हैं। यहाँ स्पष्ट करना चाहूँगा कि भारत विश्व का सबसे प्राचीन सभ्यता वाला देश है और यहाँ की सभ्यता में अध्यात्म और चिन्तन का उत्कर्ष पाया जाता है। यह राम और कृष्ण की धरती है।

यहाँ के अन्तर वैयक्तिक संचार को यदि समझना है, तो यहाँ के परिधानों को समझना अति आवश्यक है। क्योंकि संचार की प्रक्रिया केवल शाब्दिक नहीं होती है। संचार की पूरी प्रक्रिया शाब्दिक और शारीरिक भाषा तथा परिधान को मिलाकर पूरी होती है। चूँकि यह संचार का विषय है, तो इसमें अध्यात्म औैर चेतना की बात पर चर्चा को मैं आवश्यक नहीं समझता।

इसलिए मैं यहाँ के अन्तर वैयक्तिक संचार प्रकिया पर पुनः लौटते हुए, बताना चाहूँगा कि भारत में अन्तर वैयक्तिक संचार दो प्रकार से किया जाता है। पहला सामाजिक सम्बन्धों के कारण जुड़े हुए, व्यक्तियों के बीच होता है। इस अन्तर वैयक्तिक संचार की प्रक्रिया में दो व्यक्ति एक दूसरे से दो मीटर की दूरी रखते हुए, अभिवादन निवेदित करते हैं।

जिसमें दोनों व्यक्तियों द्वारा एक दूसरे के लिए अपने-अपने दोनों हाथों को जोड़कर अभिवादन निवेदित किया जाता है। दूसरा यदि दोनों व्यक्ति आपस में कुटुम्ब हों तो वहाँ संचार करने वाला व्यक्ति वरिष्ठ कुटुम्ब का चरण स्पर्श करता है। इसमें वयोवृद्ध कुटुम्ब जिसका चरण स्पर्श किया जाता है, इस प्रक्रिया में उसकी अव्यक्त अनुमति अनुमोदित होती है। वह चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति को देखते ही कहता है, अरे तुम कब आये।

उसके पश्चात् उस वयोवृद्ध कुटुम्ब का चरण स्पर्श किया जाता है। अतः भारतीय संचार की व्यवस्था को वही अच्छे ढंग से जान और समझ सकता है। जो उस परिवेश में जन्मा तथा पला बढ़ा हो। इसीलिए मैंने यह सोचा कि भारतीय संचार प्रणाली की समग्रता को पत्रकारिता जगत में प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए।

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