भानु प्रताप मिश्र
पत्रकारिता और जनसंचार के अध्ययन के दौरान मैंने देखा कि यह अपने आप में अनोखा विषय है। इसे अनोखा कहने से मेरा तात्पर्य यह है कि इसकी अपनी कोई मानक विषय वस्तु नहीं है। जैसे भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है, इसके अपने कुछ मानक अभिलेख, व्याकरण आदि हैं। राजनीति, विधि व्यवस्था, शासन प्रणाली, अर्थशास्त्र, पर्यावरण, भूगोल, इतिहास, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, दर्शन सहित अन्य सभी विषयों के अपने मानक अभिलेख और सामग्री हैं।
वहीं पत्रकारिता में मौलिक विषय संचार अर्थात् संवाद है और संचार में सभी विषयों के स्रोत, सन्देश, माध्यम तथा उसका मानवीय जीवन पर होने वाले प्रभाव आदि के विषय में जानना, लिखना एवं उसे समाज के बीच पहुँचाने के विषय में ही अध्ययन किया जाता है। अर्थात् पत्रकारिता में हिन्दी या कोई अन्य भाषा सहित राजनीति, विधि व्यवस्था, शासन प्रणाली, अर्थशास्त्र, पर्यावरण, भूगोल, इतिहास, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, दर्शन सहित अन्य सभी विषयों का अध्ययन या जानने-समझने की आवश्यकता होती है। जिसमें संचार की आवश्यकता होती है और इस बिन्दु पर मेरा व्यक्तिगत मत है कि पूरे ब्रह्मांड में कोई ऐसी विषय वस्तु नहीं है, जिसके तकनीकी ज्ञान या जानकारी को संचार के बिना दूसरे व्यक्ति तक प्रेषित किया जा सके।
इसका अर्थ यह होता है कि संचार का विषय क्षेत्र बहुत बड़ा है और यही कारण है कि पत्रकारिता की सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। अर्थात् पत्रकारिता एक ऐसा विषय है, जिसके केन्द्र में संचार है और संचारक, संचार की प्रक्रिया में माध्यम तथा उसका समाजिक प्रभाव आदि का ही आकलन किया जाता है। इसके आधार पर यह स्पष्ट है कि संचार पत्रकारिता का केन्द्र बिन्दु है। वहीं संचार मानवीय जीवन का आवश्यक अवयव है। अतः यह कहना कहीं से भी अतिशयोक्ति प्रतीत नहीं होता है कि संचार भोजन की भाँति मानवीय जीवन का एक आवश्यक अंग है। अर्थात् संचार हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे के समक्ष अपने मनोभाव को रखने की प्रक्रिया है।
हम अपने मन के उदगारों, आवश्यकताओं और भावनाओं को शब्दों, प्रतीकों या संकेतों के माध्यम से किसी दूसरे तक पहुँचाने के लिए जिस प्रक्रिया को अपनाते हैं। उस प्रक्रिया को ही संचार कहा जाता है। अर्थात् हम अपने मानसिक, बौद्धिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शारीरिक, आर्थिक, व्यवसायिक आदि सभी प्रकार के आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दूसरे व्यक्ति के समक्ष, जिस प्रक्रिया का उपयोग करके अपने मन के भाव को रखते हैं। उस प्रक्रिया को संचार कहा जाता है। हम दो स्वरूपों में ही समाज से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संचार प्रक्रिया द्वारा संवाद स्थापित करते हैं।
(1) शाब्दिक स्वरूप (2) अशाब्दिक स्वरूप
(1) शाब्दिक संचार : जब शब्दों के सहयोग या माध्यम से बोलकर या लिखकर संचार किया जाता है। तब उसे शाब्दिक संचार कहते हैं। अतः शाब्दिक संचार किसी भाषा के माध्यम से मन की अभिव्यक्ति को अभिव्यक्त की जाने वाली संचार व्यवस्था होती है। यह संचार प्रक्रिया लिखित या मौखिक अर्थात् बोलकर की जाती है।
(2) अशाब्दिक संचार : जब इशारे और चित्रों या प्रतीकों के माध्यम से संचार किया जाता है। उसे अशाब्दिक संचार कहते हैं। अतः अशाब्दिक संचार, संचार की वह प्रक्रिया है, जिसमें अभिव्यक्ति को भाषा के माध्यम से नहीं, अपितु चित्रों, प्रतीकों या संकेतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। जनसंचार के माध्यमों में इसका उदाहरण फोटोग्राफ के माध्यम से समाचारों के भाव को अभिव्यक्त करना हो सकता है।
पत्रकारिता सभ्य समाज का समाजिक उपकरण
पत्रकारिता सभ्य समाज का संदेश देने वाला एक उपकरण है, जो कि समाज में संदेश देने, समाज तक मनोरंजन पहुंचाने व समाज को शिक्षित करने का कार्य करता है। इसलिए इसकी प्रासंगिकता समाज के हर विषयों पर होती है। यही कारण है कि आज इस विषय के हर पहलू पर विचार विमर्श किया जा रहा है।