कामवाली बाई आज फिर देर से आई थी। उसकी इस लेट लतीफ़ी से ज़ेबा मेम बहुत परेशान थी। इस वजह से उन्हें कभी आफिस जाने में देरी हो जाती थी। उन्हें बड़ी झुंझलाहट होती परंतु वे जानती थीं कि अगर गुस्से में ज्यादा कुछ कह दिया तो कामवाली बाई नाराज़ हो कर काम ही छोड़ कर ना चली जाये।
Bhanu Pratap Mishra
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कवि रमेशराज धीरे-धीरे जिस पाश्चात्य संस्कृति का शिकार हमारा समाज होता जा रहा है, उसके…
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स्वच्छता के लिए प्रतिकों के रूप में चलाया जाने वाला अभियान मात्र अभिनय का एक उपक्रम है। जिसके माध्यम से जनता में संदेश देने का उद्देश्य कम और मीडिया में अभिनय के माध्यम से स्थान बनाने का उद्देश्य अधिक होता है। इसलिए यह स्वभाविक है कि उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा इस प्रकार का अभिनय भी अधिक पारंगतता से किया जाता है। इस प्रकार के अभिनय से ऐसा प्रतीत होता है कि समाज में उनके द्वारा सकारात्मक संदेश भेजने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन अन्य मुद्दे गौण हो तो इसे अभिनय ही कहा जा सकता है।
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मई माह की चिलचिलाती धूप में झुलसते और गर्म हवाओं के तमाचे खाते हुए वह तेज़-तेज़ कदम रखते हुए घर की ओर बढ़ रहा था… दो ठ़डे-मीठे ख्यालों को मन में संजोये कि घर जाते ही माँ से कहेगा कि खूब सारी कुटी बर्फ मिला रूह अफज़ाह का शर्बत बना दें, जिसे तृप्त भाव से पी कर कूलर की मनभावन ठंडक में पाँव पसार कर साँझ तक सोता रहेगा
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मनोरंजन वैदिक काल से समाज का अंग रहा है। समय के साथ मनोरंजन के साधनों में परिवर्तन होते होते आज मनोरंजन फिल्मों और हास्य धारावाहिकों में खोजा जाने लगा है। पूर्व में लोक कलाओं अर्थात् लोक संचार के माध्यमों से मनोरंजन का कार्य किया जाता था। इस लिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि लोक संचार क्या है ?
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इन्द्रियाँ काम के कार्यकलापों के विभिन्न द्वार हैं। काम का निवास शरीर में है, किन्तु उसे इन्द्रिय रूपी झरोखे प्राप्त हैं। अतः कुल मिलाकर इन्द्रियाँ शरीर से श्रेष्ठ हैं। श्रेष्ठ चेतना या कृष्णभावनामृत होने पर ये द्वार काम में नहीं आते। कृष्णभावनामृत में आत्मा भगवान् के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित करता है।
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भारतीय साहित्यों की वैज्ञानिकता को जानने के लिए जीवन को दो भागों में बांट कर देखे जाने की आवश्यकता है। एक भाग आत्म तत्व है, जिसे आत्मा कहा जाता है और उसकी जानकारी पा जाना ही जीवन का रहस्य होता है। आत्मा को समझने के लिए स्व का ज्ञान होना आवश्यक है और स्व के ज्ञान के लिए भारत के समस्त साहित्य धोषणा करते हैं कि एक दुनिया व्यक्ति के अंदर है।
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पं. श्रीराम शर्मा आचार्य – जीभ सब के मुख में है और बोलते भी सभी…
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मनुष्य में जहाँ शारीरिक-मानसिक स्तर की अनेक विशेषताएँ हैं। वहीं उसकी वरिष्ठता इस आधार पर भी है कि उसमें अंतरात्मा कहा जाने वाला एक विशेष तत्त्व पाया जाता है। उसमें उत्कृष्टता का समर्थन और निकृष्टता का विरोध करने की ऐसी क्षमता है, जो अन्य किसी प्राणी में नहीं पाई जाती। जीव-जंतुओं में उनकी इच्छा या आवश्यकता की पूर्ति के निमित्त ही कई प्रकार की प्रेरणाएँ उठती हैं।
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वैदिक काल से सातवीं शताब्दी तक हमारे देश में शिक्षा की प्रणाली पूर्णतः गुरुकुल पर निर्भर हुआ करती थी। उसके पश्चात् बाह्य आक्रमण से संस्कृति में धीरे-धीरे बदलाव हुआ और उसके साथ ही शिक्षा की प्रणाली को विद्यालीन और विश्व विद्यालीन शिक्षा प्रणाली में परिवर्तित किया गया, जिसके साथ-साथ हमारी सभ्यता भी बदलती गयी और हम भी पूरी तरह बदलते गये।